“ईश्वर का गुणगान हो, तुम्हारा हृदय ईश्वर के स्मरण को समर्पित है, तुम्हारी आत्मा ईश्वर के प्रसन्नतादायक समाचारों से प्रसन्न है और तुम प्रार्थना में तल्लीन हो। प्रार्थना की स्थिति सर्वोत्तम स्थिति है...।”
— अब्दुल‑बहा
सेवा और उपासना सामुदायिक जीवन के प्रतिमान के केन्द्र में हैं, जिसे पूरी दुनिया में बहाई साकार करना चाह रहे हैं। ये दो अलग किन्तु अभिन्न तत्व हैं जो समुदाय के जीवन को प्रेरित करते हैं। अब्दुल-बहा लिखते हैं कि “सफलता और समृद्धि सेवा और ईश्वर की आराधना पर निर्भर करती है।”
बहाई जीवन का अभिन्न अंग है प्रार्थना चाहे यह व्यक्ति के स्तर पर हो, समुदाय के स्तर पर या फिर संस्थाओं के स्तर पर। बहाई अपना हृदय बार-बार प्रार्थना में ईश्वर की ओर उन्मुख करते हैं— उसकी सहायता की कामना करते हुये, अपने प्रियजनों की ओर से अभ्यर्थना करते हुये,गुणगान व कृतज्ञता प्रस्तुत करते हुये, और दिव्य सम्पुष्टि तथा मार्गदर्शन की याचना करते हुये। इसके अतिरिक्त, परामर्श की सभायें और बैठकें जहाँ एक या दूसरी योजना के संचालन के लिये मित्र इकठ्ठा होते हैं, सामान्यतः प्रार्थनाओं से प्रारम्भ होती हैं और प्रार्थनाओें से ही समाप्त होती है।
बहाई वैसी बैठकें भी आयोजित करते हैं जिनमें मित्रगण, चाहे वे बहाई हों या कोई अन्य, प्रार्थनाओं से जुड़ते हैं, अक्सर एक-दूसरे के घरों में। इस प्रकार की भक्तिपरक बैठकें प्रतिभागियों में आध्यात्मिक संवेदनशीलता का संचार करती हैं ओर सेवा के कार्यों में जब वे साथ-साथ होते हैं तब सामुदायिक जीवन का वह प्रतिमान बनता है जो भक्ति-भावना से प्रेरित होता है और आध्यात्मिक तथा भौतिक समृद्धि प्राप्त करने पर केन्द्रित होता है।
भक्ति और सेवा का मिलन मैश्रीकुल-अज़कार की संस्था में मुखरित होता है। इस भवन में एक केन्द्रीय कक्ष होता है जो एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र में प्रार्थना के लिये होता है और कुछ उप-भवन होते हैं जो शिक्षा, स्वास्थ्य और समुदाय के सामाजिक तथा आर्थिक विकास से सम्बन्धित सेवाओं के लिये समर्पित होते हैं। हालाँकि आज दुनिया में कुछ ही मैश्रीकुल-अज़कार है, उनकी स्थापना के बीज अनेका-अनेक समुदायों में बोये जा रहे हैं और भविष्य में प्रत्येक क्षेत्र में हम ऐसे भवनों के लाभ प्राप्त कर सकेंगे।