व्यक्ति और समाज »
आज हम इतिहास के अनूठे काल में जी रहे हैं। जब मानवजाति अपनी बाल्यावस्था से उभर कर सामूहिक वयस्कता की ओर बढ़ रही है, ऐसे समय में व्यक्तियों, समुदायों और समाज की संस्थाओं के सम्बन्धों को और अधिक गहराई और नये ढंग से समझने की ज़रूरत है।
“प्रभु की आस्था और ‘उसके’ धर्म को अनुप्राणित करने का मूल उद्देश्य है मानव के हितों की रक्षा और मानवजाति के बीच एकता की भावना बढ़ाना और प्रेम तथा बंधुत्व की भावना को प्रोत्साहित करना।”— बहाउल्लाह
मानवजाति की एकता के सिद्धांत को कार्यरूप देना बहाउल्लाह के प्रकटीकरण का तात्कालिक लक्ष्य और संचालन-सिद्धांत है। बहाउल्लाह ने मानव-संसार की तुलना मानव-शरीर से की है। शरीर के अंदर लाखों कोशिकायें हैं, जो विभिन्न आकार में हैं और जिनके भिन्न-भिन्न काम हैं, ये सब एक स्वस्थ शरीर-रचना को बनाये रखने के लिये अपना-अपना काम करते हैं। इसी प्रकार, व्यक्तियों, समुदायों तथा संस्थाओं के बीच समरसतापूर्ण सम्बन्ध समाज को बनाये रखने में मदद करते हैं और सभ्यता के विकास में सहयोग प्रदान करते हैं।
आज हम इतिहास के अनूठे काल में जी रहे हैं। जब मानवजाति अपनी बाल्यावस्था से उभर कर सामूहिक वयस्कता की ओर बढ़ रही है, ऐसे समय में व्यक्तियों, समुदायों और समाज की संस्थाओं के सम्बन्धों को और अधिक गहराई और नये ढंग से समझने की ज़रूरत है।
यह विश्वास कि हम एक ही मानव-परिवार से संबद्ध हैं, बहाई धर्म के केन्द्र में है। मानवजाति की एकता का सिद्धांत “वह धुरी है जिसके चारों ओर बहाउल्लाह की शिक्षायें घुमती हैं...।”
बहाई समुदाय के कार्यकलाप संस्थाओं की एक प्रणाली के माध्यम से संचालित किये जाते हैं, प्रत्येक संस्था के अलग-अलग काम हैं। प्रशासनिक व्यवस्था के नाम से जाने जानी वाली इस प्रणाली और इसकी कार्य-प्रणाली को मार्गदर्शन देने वाले सिद्धांत बहाउल्लाह के लेखों में पाये जाते हैं।