“मानवजाति की सबसे बड़ी आवश्यकता सहयोग और पारस्परिकता की है।”- अब्दुल-बहा
आज हम इतिहास के एक अनूठे काल में जी रहे हैं। जब मानवजाति अपनी बाल्यावस्था से निकल कर सामूहिक वयस्कता की ओर बढ़ रही है तब व्यक्तियों, समुदायों और समाज की संस्थाओं के सम्बन्धों को नये ढंग से समझने की और भी अधिक ज़रूरत है।
सभ्यता के विकास में इन तीन पात्रों के एक दूसरे पर निर्भर होने को मान्यता मिलनी चाहिए और परस्पर विरोध, उदाहरण के लिये, संस्थायें अपना वर्चस्व सिद्ध करने के लिये आज्ञाकारिता की माँग करती हैं, जबकि व्यक्ति स्वतंत्रता के लिए जोरदार मांग करता है, इसके स्थान पर बेहतर दुनिया के निर्माण में दोनों की अधिक पूरक भूमिका वाली अवधारणाओं को स्थान दिया जाना चाहिए।
यह स्वीकार करना कि व्यक्ति, समुदाय और समाज की संस्थायें सभ्यता के निर्माण के तीन मुख्य पात्र हैं और इसी के अनुसार कार्य करना मानव की खुशी के लिये अनेक महान सम्भावनाओं के द्वार खोलता है और ऐसे वातावरणों के निर्माण में सहयोग प्रदान करता है जिसमंे मानवात्मा की सच्ची शक्तियाँ निर्मुक्त हो सकती हैं।
“सभी मनुष्यों का सृजन एक निरन्तर प्रगतिशील सभ्यता को आगे ले जाने के लिये हुआ है।”
— बहाउल्लाह