प्रत्येक मानव की आवश्यक पहचान उसकी विवेकी और अनश्वर आत्मा है, जो “भौतिक सृष्टि की व्यवस्था से पूर्णत: परे होती है।” बहाउल्लाह ने आत्मा व शरीर के बीच के सम्बन्ध को समझाने के लिए सूर्य की उपमा का उपयोग किया है : “मनुष्य की आत्मा सूर्य है, जिससे उसका शरीर प्रदीप्त होता है और जिससे यह अपना पोषण प्राप्त करता है और इसे ऐसे ही माना जाना चाहिये।”
आत्मा की शक्ति के उपयोग के द्वारा मानव-प्रगति प्राप्त की जाती है। अब्दुल-बहा ने कहा है कि आत्मा “वस्तुओं की वास्तविकता खोज सकती है, लोगों के अस्तित्व की विशिष्टता समझ सकती है और अस्तित्व के रहस्यों की गहराई तक जा सकती है। विवेकी आत्मा के बुद्धिकौशल के अभ्यास से ही सभी विज्ञान, ज्ञान, कला, चमत्कार, संस्थायें, खोजें और उद्यम स्वरूप धारण करते हैं।”
हम दिव्य गुणों को परावर्तित करने में उसी हद तक समर्थ होते हैं जिस हद तक हम प्रार्थना, पवित्र ग्रंथों के अध्ययन और इसे अपने जीवन में लागू करने, ज्ञान प्राप्त करने, अपने आचरण को ऊँचा उठाने और परीक्षा तथा कठिनाइयों पर विजय पाने तथा मानवजाति की सेवा करने के द्वारा अपने हृदय और मस्तिष्क के आइने को स्वच्छ करते हैं।
जब इस संसार में मृत्यु का आगमन होता है तब आत्मा शरीर से अलग हो जाती है और पूर्णता की ओर एक अनन्त यात्रा पर निरंतर प्रगति करती है।
“जब आत्मा में चेतना का जीवन होता है तब यह अच्छे फल देती है और एक दिव्य वृक्ष बनती है।”
— अब्दुल‑बहा