जैसे एक मोमबत्ती का उद्देश्य प्रकाश देना है वैसे ही मानव-आत्मा का सृजन उदारतापूर्वक देने के लिये हुआ है। हम सेवा के अपने जीवन में सर्वोच्च लक्ष्य को तब पा लेते हैं; जब हम अपना समय, शक्ति, ज्ञान और आर्थिक संसाधन देते हैं।
देने की प्रेरणा ईश्वर के प्रेम से मिलती है। जब यह प्रेम हमारे हृदय में भर जाता है तब उदारता हमारे आचरण के प्रतिमान का चरित्र-चित्रण करती है। जब हम ईश्वर के प्रेम के कारण अन्य की सेवा करते हैं, तब हम न किसी पहचान की चाह से, न कोई पुरस्कार की इच्छा और न ही किसी भय अथवा दण्ड के डर से, प्रेरित होते हैं । मानवजाति की सेवा को समर्पित एक जीवन का अर्थ होता है विनम्रता और अनासक्ति, न कि स्व-हित और आडम्बर।
शोगी एफेंदी ने लिखा है: “हमें अवश्य ही फौवारे अथवा झरने की तरह होना चाहिये, जो उन सब से अपने को निरंतर खाली करता रहता है जो उसके पास है और निरन्तर एक अदृश्य स्रोत से भरता रहता है। गरीबी के भय से विचलित हुये बगैर और समस्त सम्पदा व समस्त शुभ के स्रोत की अचूक कृपा पर भरोसा रखते हुये निरन्तर अपने बंधु-बांधवों की भलाई के लिये देते रहना - सही जीवन जीने का यही रहस्य है।”
“देना और उदार होना ‘मेरे’ गुण हैं; सौभाग्य है उसका जो ‘मेरे’ गुणों से स्वयं को अलंकृत कर लेता है।”
— बहाउल्लाह