बहाउल्लाह और उनके सह-निर्वासित खाड़ी के उस पार अक्का जाने के रास्ते में 31 अगस्त, 1868 के दिन हायफा में, थोड़ी देर के लिये ठहरे थे। हायफा नगर तब कार्मल पर्वत के तल में स्थित था।
अक्का की कारानगरी से बहाउल्लाह को जब रिहाई मिली तब वह तीन बार हायफा गये - 1889, 1890 और 1891 में। अनेक महीनों के अन्तिम प्रवास-काल में, बहाउल्लाह ने कार्मल पर्वत की उत्तरी ढलान पर उस स्थान की पहचान की थी जहाँ बाब की समाधि स्थित होनी थी। अक्का के निवासी रहते हुये, अब्दुल-बहा ने समाधि के भवन की व्यवस्था की। सन् 1909 में उन्होंने बाब के अवशेष को उनके स्थायी निवास स्थल में भूमिगत किया।
बाब की समाधि का निर्माण ‘अब्दुल-बहा’ की देख-रेख में किया गया था। आरम्भ में इसमें छः कमरे थे। दक्षिणी क्षेत्र में शोगी एफेंदी ने तीन और कमरे बनवाये, जिससे भवन का आकार चैकोर हो गया, जिनके बीच के कमरे के नीचे बाब की समाधि है।
अब्दुल-बहा चाहते थे कि बाब की समाधि के लिये अंततः एक विशाल अधिरचना का निर्माण किया जाये। शोगी एफेंदी ने 1942 में, कनाडा निवासी प्रख्यात वास्तुशिल्पी विलियम सदरलैण्ड मैक्सवेल को इसकी रूपरेखा तैयार करने को कहा और इसके अन्तिम रूप को इसे 1944 में स्वीकृति प्रदान की गई।
बाब की समाधि की अधिरचना का निर्माण सन् 1947 में आरम्भ हुआ तथा विभिन्न चरणों में प्रगति करता रहा। पहला चरण, जब मई 1950 में मूल समाधिस्थल पूरा हुआ, स्तम्भों की एक शृृंखला की माँग करता था जिन पर चारों ओर छज्जे बनाये जा सकते थे, जिनके ऊपर जंगले का प्रावधान था।.
स्तम्भवाली छज्जों के निर्माण का काम पूरा हो जाने के बाद खिड़कियों वाले रोशनदान को बनाने का काम प्रारम्भ हुआ, जिसके ऊपर हर कोने में मीनार की शक्ल में बने कलश के समान जंगले बने हैं। 11 मीटर की ऊँचाई पर ढोल के आकार में तब रोशनदान का निर्माण किया गया जिसमें 18 नोकदार खिड़कियां बनाई गईं। पूरी अधिरचना एक गुम्बज से ढंकी है जिनके ऊपर स्वर्णिम टाइल डाले गये हैं और उसके ऊपर लालटेन तथा कलश।
बाब की समाधि की अधिरचना का काम सितम्बर 1953 में पूरा हुआ। एक महीने बाद शोगी एफेंदी ने लिखा: “दूर-दराज से आने वाले लोगों की निरन्तर उमड़ती भीड़, कभी-कभी तो हज़ार की संख्या को पार करती हुई, उस प्रवेश द्वार पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिये एकत्र हो रही है जहाँ से होकर इस तेजस्वी समाधि के गर्भगृह में जाया जाता है; ईश्वर के पर्वत पर विराजमान स्वर्णिम ताज पहने झिलमिलाते धवल वस्त्र धारण किये, हरे-भरे घेरे से सुसज्जित कार्मल की महारानी आसमान, सागर, पर्वत और धरती से लोगों को मोह रही है।”
आज बाब की समाधि के चारों ओर अठ्ठारह विशाल छज्जे हैं, कार्मल पर्वत के आधार तल से शिखर तक, नौ समाधि के ऊपर और नौ समाधि के नीचे। मई 2001 में हुये एक उत्सव में इन छज्जों का उद्घाटन किया गया था।
सन् 2001 से एक करोड़ से अधिक लोग छज्जों पर बने उद्यान के दर्शन के लिये आ चुके हैं। सन् 2008 में, अक्का में अवस्थित बहाउल्लाह की समाधि के साथ, बाब की समाधि को मानवजाति की लोक-सम्पदा को समृद्ध करने के लिये इनके “उत्कृष्ट वैश्विक महत्व” को ध्यान में रखते हुये युनेस्को के विश्व लोक-सम्पदा की सूची में शामिल किया गया।