अप्रैल 1963, बहाउल्लाह की जन-घोषणा की शताब्दी, दो शुभ संकेत देने वाली घटनाओं के लिये विशिष्ट है,-बहाउल्लाह की प्रशासनिक व्यवस्था की सर्वोच्च संस्था विश्व न्याय मंदिर का पहला चुनाव-और कुछ दिनों बाद, पहले बहाई विश्व काँग्रेस का लंदन में आयोजन, जिसमें 7000 प्रतिभागियों ने अपनी उपस्थिति से यह प्रदर्शित कर दिया कि पिछले एक दशक में बहाई विश्व समुदाय ने अपना विकास किया है।
विश्व न्याय मंदिर ने जिस समुदाय को उत्ताधिकार के रूप में पाया था वह बहाई धर्म के विकास और सुगठन के लिये शोगी एफेंदी द्वारा की गई पहली विश्व-योजना के परिणामस्वरूप तेजी के साथ विकास कर पाया। बहाई अब 259 प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्रों, अधीन राष्ट्रों और प्रमुख द्वीपों के 14000 से भी अधिक क्षेत्रों में निवास करते हैं। तब कोई 56 देशों में राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं की स्थापना हो चुकी थी। हालाँकि अभी भी तुलनात्मक रूप से यह छोटा क्षेत्र था, लेकिन बहाई धर्म एक विश्व धर्म का स्वरूप ग्रहण कर चुका था। प्रभुधर्म की सांस्कृतिक अनुकूलनशीलता और विविधताओं से भरे लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता अब बढ़ती हुई नज़र आने लगी थी; इसका सामूहिक जीवन बहाउल्लाह के प्रकटीकरण में स्थापित कुछ समाज-निर्माण की क्षमताओं को प्रत्यक्ष करने लगा था।
अपनी स्थापना के कुछ ही समय बाद विश्व न्याय मंदिर ने शोगी एफेंदी द्वारा दिये गये प्रतिमान के आधार पर विश्वव्यापी योजनाओं की शृंखला के माध्यम से बहाई धर्म के विकास को जारी रखा, प्रत्येक योजना अनेक वर्षों की हुआ करती थी। परिणामस्वरूप विश्वव्यापी बहाई समुदाय के सदस्य आज काफी बढ़कर 50 लाख से भी अधिक की संख्या में एक लाख से भी अधिक क्षेत्रों में निवास करते हैं।
1963 से 1973 के बीच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहाई सदस्यता के गठन में एक उल्लेखनीय बदलाव आया, क्योंकि अफ्रिका, एशिया और लैटिन अमेरिका के लोगों ने बड़ी संख्या में प्रभुधर्म को स्वीकारा। उस दशक के दौरान जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों की सदस्यता में दोगुनी से अधिक वृद्धि हुई और राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं की संख्या 56, जिन्होंने प्रथम विश्व न्याय मंदिर का चुनाव किया था, से बढ़कर 113 हो गई। आज 170 से भी अधिक ऐसी राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभायें हैं।
बहाउल्लाह ने विश्व न्याय मंदिर को, शिक्षा, शांति और समृद्धि को बढ़ावा देते हुये, मानवजाति के सामान्य कल्याण के लिये एक सकारात्मक प्रभाव डालने का आदेश दिया था। 50 सालों से भी अधिक समय विश्व न्याय मंदिर ने ऐसे विश्वव्यापी समुदाय को खड़ा करने के लिये अपनी शक्ति और संसाधनों को लगाया ताकि उसके सदस्य बहाउल्लाह की शिक्षाओं को उनके स्थानीय लोगों की ज़रूरतों के अनुकूल लागू कर सकें।
बहाई शिक्षाओं के बारे में जानना एक बात है और उन्हें समाज के जीवन और उसकी आवश्यकताओं के अनुकूल लागू करना एक ऐसी बात है जिसे सीखने की ज़रूरत है। नये क्षेत्रों में प्रभुधर्म के विस्तार के परिणामस्वरूप, बहाईयों ने एक प्रणालीबद्ध तरीके से छान-बीन शुरू कर दी कि किस प्रकार बहाउल्लाह की शिक्षाओं को व्यावहारिक रूप से समुदायों के विकास के लिये लागू किया जाये-स्वास्थ्य, साक्षरता, कृषि और संचार तकनीक के क्षेत्र में।
लम्बे समय के प्रयोग ने उन प्रक्रियाओं को जन्म दिया जिसने लोगों को आध्यात्मिक, सामाजिक और बौद्धिक विकास को ख़ुद से विकसित करने की क्षमता प्रदान की। 1996 से प्रारम्भ कर, विश्व न्याय मंदिर ने पूरे बहाई विश्व समुदाय के लिये एक विश्वव्यापी कार्यक्रम का आरम्भ किया, जिसने इसे विकास के एक नये मुक़ाम पर लाकर खड़ा कर दिया है।
एक छोटा-सा समुदाय, जो अपने ही जीवन और अपनी ही गतिविधियों के बीच रहा करता था, बहाई विश्व यह मार्गदर्शन पा सका कि अपनी गतिविधियों के द्वार जनसाधारण के लिये खोल दे जो मानवजाति के जीवन पर धीरे-धीरे लाभदायक प्रभाव डालना शुरू कर सके। ऐसी गतिविधियों के संचालन के लिये ज्ञान, कौशल और आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्राप्त करने में सहायता देने के उद्देश्य से, विश्व न्याय मंदिर ने प्रत्येक देश में प्रशिक्षण संस्थान प्रक्रिया की स्थापना को प्रोत्साहन दिया।
मूलगतिविधियां, जो पूरी दुनिया के बहाई अपने पड़ोस और गांवों के क्षेत्रों में आगे बढ़ा रहे हैं; वे हैं : बच्चों की कक्षायें, युवाओं के लिये आध्यात्मिक सशक्तिकरण कार्यक्रम, भक्तिपरक बैठकें और स्टडी सर्कल जो सेवा की क्षमता प्रदान करते हैं।
प्रणालीबद्ध कार्य और सीखने की एक संस्कृति-योजना बनाने, कार्य करने और समीक्षा की एक प्रक्रिया-उस तौर-तरीके की विशेषता बतलाते हैं जिसके आधार पर विश्वव्यापी बहाई समुदाय कार्य करता हैं।
जिस प्रकार बहाई धर्म और इसके क्रियाकलाप ने विस्तार पाया है उसी प्रकार विश्व केन्द्र में भी आध्यात्मिक और प्रशासनिक विकास हुआ है। विश्व न्याय मंदिर ने अपना स्वयं का संविधान (1972),सूत्रबद्ध और प्रकाशित किया, महाद्वीपीय सलाहकार मण्डल (1968) की नियुक्ति कर धर्मभुजाओं के काम को भविष्य में विस्तारित, और अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षण केन्द्र की स्थापना (1973) प्रभुधर्म के विश्व केन्द्र में की। विश्व न्याय मंदिर ने कार्मल पर्वत पर अवस्थित अपने स्थायी कार्यस्थल में सन (1983) से काम करना शुरू किया। इस भवन के दोनों ओर प्रशासनिक भवनों का निर्माण कार्य सन् 2001 में पूरा हुआ, जब अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षण केन्द्र के भवन का उद्घाटन किया गया।
बहाउल्लाह और बाब की समाधियों का संरक्षण और सौन्दर्यीकरण तथा प्रभुधर्म के इतिहास से जुड़े अन्य स्थानों के रख-रखाव का काम भी चलता रहा। कार्मल पर्वत पर बाब की समाधि के ऊपर और नीचे उन्नीस सुन्दर उद्यान-चबूतरों से बहता जल प्रपात निर्मित किया गया, जिसका विस्तार पर्वत के निचले हिस्से से शीर्ष तक जाता है इसे भी सन् 2001 में पूरा किया गया जिससे उस स्थान का सौन्दर्य और रूपांतरण तथा समरसता का बहाई दृष्टिकोण प्रदर्शित होता है।
महाद्वीपीय बहाई उपासना मंदिरों का उद्घाटन पनामा सिटी, पनामा (1972) तीयापपाटा, पश्चिमी समोआ (1984) और नई दिल्ली, भारत (1986) में किया गया तथा अंतिम महाद्वीपीय उपासना मंदिर के निर्माण का कार्य सेंटियागो, चिली में अपने अंतिम चरण में है।
1979 के बाद से, ईरान में इस्लामी क्रांति के कारण उत्पीड़न सह रहे बहाई समुदाय ने एक बार फिर भयंकर यातनायें सहीं। इस स्थिति ने बहाई धर्म को अनजानेपन से बाहर निकाला है। आज के विश्व के नेताओं और सरकारों द्वारा इसे मान्यता दी जा रही है, उदाहरण के तौर पर कुछ ने विभिन्न सामाजिक और नैतिक समस्याओं के समाधान के लिए बहाई विचार जानना चाहा है।
21 अप्रैल 1992 से 20 अप्रैल 1993 की अवधि को बहाउल्लाह को श्रद्धांजलि देने और उनके स्वर्गारोहण की शताब्दी मनाने के लिए पवित्र वर्ष घोषित किया गया। उनकी समाधि के परिसर में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया जिसमें दुनिया भर में फैले बहाई समुदाय के तीन हजार से भी अधिक बहाईयों ने प्रतिभागिता दर्ज की। बाद में, उसी वर्ष न्यूयार्क सिटी में दूसरे बहाई विश्व काँग्रेस का आयोजन किया गया। हर एक पृष्ठभूमि के कोई 27000 बहाईयों ने हर्षोल्लास के साथ समारोह में भाग लिया जो मानव समाज के लगभग सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इसी प्रकार हजारों की संख्या में उन पाँच महाद्वीपों के नौ क्षेत्रीय सम्मेलनों में लोग भाग ले रहे थे जिन्हें सेटेलाइट के माध्यम से विश्व काँग्रेस से जोड़ा गया था।
शांति पर अंतर्राष्ट्रीय सम्वाद में योगदानस्वरूप विश्व न्याय मंदिर ने सन् 1985 में दुनिया के लोगों के नाम एक संदेश जारी किया जिसमें विश्वव्यापी शांति और समृद्धि की स्थापना की पूर्व-आवश्यक शर्तों को रेखांकित किया गया है। पूरी दुनिया में बहाईयों ने इस संदेश को राष्ट्राध्यक्षों और अनेक अन्य लोगों को भेंट किया और संदेश के विषय से प्रेरित होकर हजारों की संख्या में लोग सम्मेलनों, सेमिनार तथा विचार-विमर्श के कार्यक्रमों में भाग लेने लगे।
बढ़ती हुई धार्मिक असहिष्णुता के प्रत्युत्तर में विश्व न्याय मंदिर ने सन् 2002 में दुनिया के धार्मिक नेताओं के नाम एक पत्र जारी किया जिसमें अंतर्धर्म गतिविधियों और समाज में धर्म की भूमिका से सम्बंधित संवाद का आह्वान किया गया। पत्र में उन लोगों से कहा गया कि वे धर्मो की एकता को शांति की स्थापना की एक पूर्व-आवश्यक शर्त के रूप में देखें।
विश्व न्याय मंदिर के गठन से लेकर अब तक मानव अधिकार, विश्वव्यापी समृद्धि और महिलाओं की उन्नति से सम्बंधित अनेक पहल की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ में और अनेक अंतर्राष्ट्रीय मंचों से तथा राष्ट्रीय और स्थानीय सामाजिक संगठनों के मंच पर बहाई विचार-विमर्श के कार्यक्रमों में बढ़ती हुई प्रतिभागिता निभा रहे हैं, जहाँ समाज से सम्बंधित विषयों की चर्चा होती है। युवा अपनी अद्भुत शक्ति और सापेक्षिक स्वतंत्रता के साथ बहाई गतिविधियों में अग्रणी हैं।
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आध्यात्मिकता की बहाई व्याख्या न केवल व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन को सम्मिलित करती है, अपितु समग्र मानवजाति की प्रगति को भी समाविष्ट करती है। विश्व न्याय मंदिर के मार्गदर्शन में विकास कर रहे, दूर-दूर तक फैले इस धार्मिक समुदाय का आविर्भाव विश्वास कर सकने वाले प्रमाण प्रस्तुत करता है कि अपनी समस्त विविधताओं के साथ मानवजाति एक संयुक्त परिवार की तरह एक विश्वव्यापी स्वदेशी के रूप में रहना और काम करना सीख सकती है।