इंफ्लुएंजा के एक दौरे के बाद 4 नवम्बर, 1957 को शोगी एफेंदी की मृत्यु हो गई। वह केवल 60 साल के थे। पाँच दिनों के बाद, उनकी शवयात्रा नगर की उत्तरी दिशा की ओर चली, जिसे तब ग्रेट नॉर्दन लंदन सेमेट्री कहा जाता था, जहाँ धर्मसंरक्षक के पार्थिव अवशेष समाधिस्थ किये गये।
दूसरे साल शोगी एफेंदी की समाधि पर एक सादा स्तम्भ खड़ा किया गया। इस स्तम्भ में उसी संगमरमर का इस्तेमाल किया गया जिसे उन्होंने खुद अपने परिवार के सदस्यों की हायफा में चिरविश्रामस्थलियों के लिए चुना था। स्तम्भ के ऊर पृथ्वी के आकार का एक गोलक रखा है जिसके आगे के हिस्से में अफ्रीका को रेखांकित किया गया है, जो उस महाद्वीप और उसके लोगों की आध्यात्मिकता का प्रतीक है और जो शोगी एफेंदी को बहुत प्रिय था। ग्लोब के ऊपर एक कांस्य निर्मित गरूड़ बैठा है, एक जापानी मूर्ति की प्रतिकृति, जिसे शोगी एफेंदी ने अपने कमरे में रखा था और जिसकी सुंदर प्रतिकृति तथा सौन्दर्य को वह अक्सर सराहा करते थे।
धर्मसंरक्षक की चिरविश्रामस्थली जो आज न्यू साउथगेट सेमेट्री का एक हिस्सा है, पूरी दुनिया से आने वाले लोगों के लिये प्रार्थना और चिन्तन का स्थान है।
लंदन की न्यू साउथगेट सेमेट्री में शोगी एफेंदी की चिरविश्रामस्थली। अब्दुल-बहा की वसीयत और इच्छा-पत्र से ये शब्द अंकित हैं: “देखो, वह आशीर्वादित और पावन शाखा है जो पावन वृक्षों से प्रस्फुटित हुई है। उसका सौभाग्य है जो इसकी छाया तले आश्रय पाता है, जो सम्पूर्ण मानवजाति को छाया प्रदान करता है।”
अपने धर्म के संरक्षक के अप्रत्याशित निधन के कारण हुये असह्य दुःख के बावजूद और इस तथ्य को मद्देनज़र रखते हुये कि बहाउल्लाह द्वारा आदेशित सर्वोच्च अंतर्राष्ट्रीय प्रशासनिक निकाय का चुनाव होना अभी बाकी था, दुनिया के बहाई एकता को बनाये रखने में सफल हुये।
साढ़े पाँच सालों तक - शोगी एफेंदी की मृत्यु से 1963 तक, जब विश्व न्याय मंदिर ने बहाई धर्म की बागडोर सम्हाली, समुदाय के लिये एक सुगम रास्ता यह था कि वह अटल दृढ़ता के साथ धर्मसंरक्षक द्वारा बहाई समुदाय को दी गई प्रसार और दृढ़ीकरण की योजना का अनुपालन करे। इस कार्य को करने में उनका पथ-प्रदर्शन और प्रोत्साहन अनुभवी और समर्पित अनुयायियों के एक ऐसे निकाय द्वारा किया गया, जिन्हें शोगी एफेंदी ने स्वयं नियुक्त किया था।
अपने जीवन काल में बहाउल्लाह ने कुछ विशिष्ट बहाइयों को “ईश्वर के धर्मभुजा” के रूप में नियुक्त किया था। उनकी भूमिका को औपचारिक रूप से अब्दुल-बहा द्वारा अपनी वसीयत और इच्छा-पत्र में परिभाषित किया गया था, जहाँ उन्होंने उनकी जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया था, जिसमें प्रभुधर्म का संरक्षण और प्रसार शामिल था। अब्दुल-बहा ने लिखा था कि धर्मसंरक्षक अवश्य ही भविष्य में धर्मभुजाओं की नियुक्ति और उनका मार्गदर्शन करें।
अपने जीवन के अंतिम छः वर्षों के दौरान शोगी एफेंदी ने 32 धर्मभुजाओं को नियुक्त किया। जब उनकी मृत्यु हुई तब उनमें से 27 धर्मभुजा जीवित थे। अपनी मृत्यु के कुछ सप्ताह पहले शोगी एफेंदी ने अपने एक संदेश में ईश्वर के धर्म की भुजाओं को “बहाउल्लाह के प्रारम्भिक विश्व महासंघ के प्रधान सेवक”। 1 कहकर सम्बोधत किया था।
शोगी एफेंदी की मृत्यु के बाद इन प्रधान सेवकों ने निश्चय किया कि उन्हें प्रभुधर्म का नेतृत्व सम्हालना है और जितनी जल्दी सम्भव हो सके बहाई विश्व को विश्व न्याय मंदिर के चुनाव की ओर ले जाना है। राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं ने सम्पूर्ण सहमति और निष्ठा के साथ इसका स्वागत किया। प्रभुधर्म की ज़िम्मेदारियाँ कुछ समय के लिये लेने के बाद धर्मभुजाओं ने घोषणा की कि विश्व न्याय मंदिर का चुनाव अप्रैल 1963 में किया जायेगा।
धर्मभुजाओं ने बहाई समुदाय को सहायता दी कि वह एक दशक तक चलने वाली योजना के लक्ष्यों को प्राप्त कर सके, जिस योजना की शुरूआत धर्मसंरक्षक द्वारा सन् 1953 में की गई थी। उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं की संख्या, जो शोगी एफेंदी की मृत्यु के समय 26 थी, बढ़कर दुगुनी हो गई। इस प्रकार 56 राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभाओं ने पहली बार विश्व न्याय मंदिर के चुनाव में हिस्सा लिया।
अब्दुल-बहा द्वारा उनकी वसीयत और इच्छा-पत्र में भविष्य में धर्मसंरक्षकों की नियुक्ति के सम्बन्ध में स्थापित सुस्पष्ट मानदण्ड का सही अर्थों में अनुपालन करते हुये, शोगी एफेंदी ने अपनी मृत्यु तक अपने किसी भी उत्तराधिकारी को नामजद नहीं किया। उन्हें कोई भी संतान नहीं थी और ना ही बहाउल्लाह का कोई जीवित पुरूष वंशज ही था, जो आवश्यक आध्यात्मिक गुणों को धारण करने वाला हो अथवा प्रभुधर्म के प्रति वफादार रहा था। धर्मसंरक्षक की मृत्यु के बाद सभी धर्मभुजाओं ने एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर यह स्पष्ट किया कि उन्होंने कोई भी ऐसी लिखित वसीयत नहीं प्राप्त की जिसमें शोगी एफेंदी ने अपना कोई उत्तराधिकारी नियुक्त किया हो।
शोगी एफेंदी की मृत्यु के बाद से ही बहाई समुदाय में फूट डालने की कुछ कोशिशें की गईं, लेकिन बहाई समुदाय की ऐसी ताकत और एकता थी कि ऐसे प्रयास बराबर निरर्थक सिद्ध हुये। सन् 1960 में, 80 साल की उम्र में एक अति वृद्ध धर्मभुजा - चाल्र्स मेसन रेमी ने यह दावा किया कि वह शोगी एफेंदी के वंशानुगत उत्तराधिकारी थे तब उनके निराधार दावा के प्रति किसी ने कोई ख़ास रूचि नहीं दिखलाई। उनकी मृत्यु 1974 में हो गई और वे उन मुट्ठी भर लोगों द्वारा भी नकार दिये गये जो कभी उनकी ओर आकर्षित हुये थे।
केवल विश्व न्याय मंदिर को यह प्रमाणित करने का अधिकार था कि बहाई धर्म के एक दूसरे धर्मसंरक्षक भी हो सकते हैं अथवा नहीं, वह भी, उनकी नियुक्ति अब्दुल-बहा की वसीयत और इच्छा-पत्र में निर्धारित मानदण्डों के अनुसार जब की गई हो। 1963 में नियुक्ति के बाद विश्व न्याय मंदिर ने घोषणा की कि उसने किसी भी तरह का एक दूसरा धर्मसंरक्षक नियुक्त करने का उपाय नहीं पाया कि कोई शोगी एफेंदी के बाद नियुक्त किया जा सके।
धर्मभुजाओं को धन्यवाद, बहाई धर्म शोगी एफेंदी की मृत्यु के बाद की संकटपूर्ण घड़ी में एकीकृत और संरक्षित रहा। विश्व न्याय मंदिर ने प्रभुधर्म के इन प्रधान सेवकों के विषय में लिखा है: “धर्म का सम्पूर्ण इतिहास कहीं भी ऐसी तुलना करने योग्य अधिकृत वक्तव्य नहीं दिखलाता जिसमें अचानक दिव्य रूप से प्रेरित मार्गदर्शक से वंचित हो कर भी ऐसा स्व-अनुशासन, ऐसी असीम वफादारी और ऐसा सम्पूर्ण आत्म-त्याग किसी धर्म को नेतृत्व प्रदान करने वाले लोगों के बीच बना रहे।” 2