यहूदियों के लिये जैसे तोरा, ईसाइयों के लिये बाइबल अथवा मुसलमानों के लिये कुरान है, वैसे ही बहाउल्लाह के संकलित लेख उनके अनुयायियों द्वारा ईश्वर की ओर से प्रकटीकरण माने जाते हैं। ये बहाई धर्म का आधार बनाते हैं।
अपने निर्वासन के लम्बे सालों के दौरान बहाउल्लाह ने इतने लेखांश प्रकट किये जिन्हें संकलित किये जाने पर 100 से अधिक पुस्तकें तैय्यार हो जायेंगी। इनमें सामाजिक और नीतिपरक शिक्षायें, प्रार्थनायें, विधान और अध्यादेश, रहस्यात्मक लेख और अपने समय के सर्वाधिक शक्तिशाली शासकों को सम्बोधित उनके संदेश की निर्भीक घोषणा है।
“उनके यशस्वी, शांति लाने वाले, प्रेम उत्पन्न करने वाले शब्दों और शिक्षाओं को अपने हृदयों में उतर जाने दो...।”
— रोमानिया की महारानी मेरी
नीचे बहाउल्लाह के लेखों से कुछ अंशों का एक संक्षिप्त संकलन है।
प्रत्येक बुद्धिमान और प्रकाशित हृदय वाले व्यक्ति को यह अच्छी तरह मालूम है कि ईश्वर, जो जाना नहीं जा सकने वाला ‘सार’ है, जो दिव्य ‘स्वरूप’ है, उसे मानवीय गुणों के माध्यम से जाना नहीं जा सकता। ...मानव ‘उसका’ समुचित गुणगान कर सके या ‘उसके’ अज्ञेय रहस्य को जान सके, यह सम्भव नहीं।
(“किताब-ए-ईकान”)
प्राचीन युगों के ज्ञान का द्वार इस प्रकार सभी मनुष्यों के लिये बंद कर दिये गये हैं, चेतना के संसार से उन प्रभामंडित ‘रत्नों की पावनता’ को मानव-मंदिर के सुंदर स्वरूप द्वारा सभी मनुष्यों के समक्ष प्रकट किया गया है, ताकि वह विश्व को प्रभु के रहस्यों के बारे में बतला सके और उसके अविनाशी ‘सार’ की वास्तविकता से परिचित करा सके।
(“किताब-ए-ईकान”)
ये पावन ‘दर्पण’ ...ये सब-के-सब धरती पर उस ईश्वर के ‘संदेशवाहक’ हैं, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की ‘महाधुरी’, इसका ‘सार’ और अंतिम ‘उद्देश्य’ हैं। उनका ज्ञान और उनकी शक्ति उस एक ईश्वर से ही प्राप्त होती है, ‘उससे’ ही उनको सम्प्रभुता मिलती है।
(“किताब-ए-ईकान”)
अचूक मार्गदर्शन के प्रकाश से पथ पाते, सर्वोच्च सम्प्रभुता को धारण किये, ‘वे’ ‘उनके’ के पावन शब्दों से प्रेरित करने के लिये नियुक्त किये गये हैं, ‘उनकी’ की निर्मल अनुकम्पा के प्रसार और ‘उनके प्रकटीकरण’ के शुद्धिकारक समीर को फैलाने के लिये हैं, ताकि जो प्रभु से मिलन की इच्छा रखते हैं और जिनकी आत्मा ग्रहणशील है वे भौतिक चिन्ताओं और सीमाओं की धूल अपने हृदय-पटल से साफ कर सकें।
(“बहाउल्लाह के पावन लेखों से चयन”)
यह ईश्वर का अपरिवर्तनशील धर्म है, अतीत में शाश्वत और भविष्य में शाश्वत।
(“किताब-ए-अक़दस”)
सत्यतः मैं कहता हूँ, यह वह युग है जिसमें मनुष्यजाति उस एक ‘प्रतिज्ञाबद्ध’ (परमेश्वर) के स्वरूप के दर्शन कर सकती है और उसकी वाणी को सुन सकती है।
(“बहाउल्लाह के पावन लेखों से चयन”)
मैं ‘विवेक का सूर्य’ हूँ और ‘ज्ञान का सागर’ हूँ। मैं दुर्बल को बल देता हूँ और मृतक को पुनर्जीवित करता हूँ। मैं वह मार्गदर्शक ‘प्रकाश’ हूँ जो पथ आलोकित करता है। मैं ‘सर्वशक्तिशाली’ की भुजा पर बैठा शाही बाज़ हूँ। मैं प्रत्येक पंख-टूटे पक्षी के दुर्बल पंख खोलता हूँ और उसे उड़ान भरने की शक्ति देता हूँ।
(“टैबरनैकल ऑफ़ युनिटी” (एकता का मंडप-वितान))
दूसरों की तरह मैं भी मात्र मनुष्य था, ‘अपनी’ शय्या पर निद्रालीन और तभी देखो, ‘सर्वमहिमा’ की बयारें ‘मेरे’ ऊपर बहीं और समस्त भूत का ज्ञान ‘मुझे’ मिल गया। यह सन्देश ‘मेरा’ नहीं, बल्कि ‘उसका’ है जो ‘सर्वशक्तिमान’ और ‘सर्वज्ञ’ है और ‘उसी’ ने ‘मुझे’ धरती और आकाश के बीच अपनी आवाज उठाने की आज्ञा दी है, और इसके लिए ‘मुझ’ पर जो कुछ आन पड़ा है उसने प्रत्येक बोधसम्पन्न व्यक्ति के आँसुओं को बहने के लिए विवश किया है।
(“समनस ऑफ़ द लॉर्ड ऑफ़ होस्ट्स (युगावतार के आह्वान, राजाओं और विश्व के शासकों को सम्बोधित बहाउल्लाह की पतियाँ)”)
‘सर्वज्ञाता चिकित्सक’ ने मानवजाति की नाड़ी पर अपनी उंगली रख दी है। ‘वह’ रोग का लक्षण पहचानता है और अपने दोषमुक्त विवेक के द्वारा उपचार देता है। प्रत्येक युग की अपनी समस्या होती है और प्रत्येक आत्मा की अपनी विशेष आकांक्षा। विश्व को आज जिस औषधि की आवश्यकता है, वही औषधि आने वाले युग के लिये भी आवश्यक हो, यह जरूरी नहीं। अतः जिस युग में तुम रहते हो उस युग की आवश्यकताओं से जुड़े रहो और अपने क्रियाकलाप अपेक्षाओं व आवश्यकता की पूर्ति के लिये केन्द्रित करो।
(“टैबरनैकल ऑफ़ युनिटी” (एकता का मंडप-वितान))
यह वह युग है, जब ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ अनुकम्पाओं की वर्षा मानवजाति पर की गई है, वह युग जब समस्त सृजित वस्तुओं में ‘उसकी’ सर्वाधिक महान कृपा भर दी गई है। दुनिया के सभी लोगों के लिये यह आवश्यक है कि वे अपने मतभेदों को भुला दें और पूरी एकता तथा शांति के साथ, प्रभु द्वारा सुरक्षित प्रेम तथा दया के ‘वृक्ष’ तले शरण लें।
(“बहाउल्लाह के पावन लेखों से चयन”)
उस ‘स्वामी’ ने सम्पूर्ण विश्व के सभी रोगों की सार्वभौम दवा और सम्पूर्ण विश्व को निरोग करने के लिए जो सर्वाधिक शक्तिशाली यंत्र दिया है, वह है एक विश्वव्यापी धर्म के लिये इसके सभी लोगों के बीच एकता।
(“समन्स ऑफ़ द लॉर्ड ऑफ़ होस्ट्स (युगावतार के आह्वान, राजाओं और विश्व के शासकों को सम्बोधित बहाउल्लाह की पतियाँ)”)
सभी धर्म के अनुयायियों के साथ मित्रतापूर्ण और बंधुत्व के वातावरण में बातचीत करो।
(“बहाउल्लाह की पातियां”, बिशारत)
तुम एक ही वृक्ष के फल और एक ही शाखा की पत्तियाँ हो। एक-दूसरे के साथ सर्वाप्रेम तथा सद्भाव, मित्रता और भाईचारे का व्यवहार करो। वह जो ‘सत्य का सूर्य है’, ‘मेरा’ साक्षी है! एकता का प्रकाश इतना शक्तिशाली है कि वह सम्पूर्ण धरा को आलोकित कर सकता है।
(“भेड़िया-पुत्र के नाम पत्र”)
सम्पूर्ण पृथ्वी एक देश है, और मानवजाति इसके नागरिक।
(“बहाउल्लाह की पातियाँ”, लौह-ए-मक़सूद)
अपने सेवकों के लिये ईश्वर द्वारा निर्धारित पहला कर्तव्य है ‘उसको’ पहचानना, जो ‘उसके प्रकटीकरण का दिवावसंत’ है तथा उसके विधानों की निर्झरनी है, जो प्रभुधर्म के साम्राज्य और सृजित वस्तुओं के बीच ईश्वरत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
(“किताब-ए-अक़दस”)
हे चेतना के पुत्र! मेरा प्रथम परामर्श यह है: एक शुद्ध, दयालु एवं प्रकाशमय हृदय धारण कर, ताकि पुरातन, अमिट एवं अनन्त श्रेष्ठता का साम्राज्य तेरा हो।
(“निगूढ़ वचन” (अरबी - 1))
मनुष्य को बहुमूल्य रत्नों से भरी एक खान के समान समझो। केवल शिक्षा ही इसके कोषों को उजागर कर सकती है और मानवजाति को इसका लाभ उठाने में समर्थ बना सकती है।
(“बहाउल्लाह की पातियां”: लौह-ए-मकसूद)
जब जिज्ञासु के हृदय में प्रगाढ़ उत्सुकता, अथक प्रयत्न, समर्पित भक्ति, प्रज्वलित प्रेम, असीम आनंद और अपार संतोष की ज्योति प्रदीप्त होगी और प्रभु की प्रेममयी कृपा-वायु उसकी आस्था में प्रवाहित होगी तब ही भ्रम का अंधकार दूर होगा, शंका और कुप्रवृत्तियों की धुंध छंटेगी और ज्ञान तथा निश्चितता का प्रकाश उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रकाशित करेगा।
(“किताब-ए-ईक़ान”)
समृद्धि में उदार बनो और विपत्ति में कृतज्ञ बनो। अपने पड़ोसी के विश्वास के योग्य बनो और उसे प्रसन्नता तथा मित्रता के भाव से देखो। निर्धनों के लिये खजाना और धनवानों के लिये सचेतक बनो, अभावग्रस्तों के अभावहर्ता और प्रतिज्ञापालक बनो। तुम्हारा निर्णय न्यायपूर्ण हो और तुम्हारी वाणी में संयम हो। किसी भी मनुष्य के प्रति अन्याय मत करो और सब के प्रति विनम्रता दिखलाओ। अंधकार में भटकने वालों के लिये दीपक के समान बनो, शोकमग्नों के लिये आनन्द, प्यासों के लिये एक सागर और विपत्ति में पड़े हुये लोगों के लिये आश्रय बनो, अन्याय से पीड़ित लोगों के रक्षक और आश्रयदाता बनो। ईमानदारी और सदाचारिता के कारण तुम्हारे सभी कार्य औरों से अनूठे हों। अनजाने को घर का अपनापन दो, कष्टपीड़ितों के लिये शीतल मरहम, संत्रस्तों के लिये शक्ति के स्तम्भ बनो। नेत्रहीनों के लिये नेत्र और पथभ्रष्टों के भटकते पांव के लिये पथदर्शी प्रकाश बनो। सत्य के मुखड़े के आभूषण, वफा के माथे के मुकुट, सदाचार के मंदिर के स्तम्भ, मानवता की देह के प्राणवायु, न्याय की सेनाओं की ध्वजा, सद्गुणों के क्षितिज के जगमगाते सितारे, मानव-हृदय की धरती के लिये ओसबिन्दु, ज्ञान के महासागर के जहाज, प्रभु की अक्षय सम्पदाओं के गगन के सूर्य, प्रज्ञा के मुकुट के रत्न, अपनी पीढ़ी के आकाश के प्रखर प्रकाश और विनम्रता के वृक्ष के फल बनो।
(“भेड़िया-पुत्र के नाम पत्र”)