29 मई, 1892 को तड़के सुबह, अपने जीवन के पचहत्तरवें साल में बहाउल्लाह का स्वर्गारोहण हो गया। अन्ततः, उत्पीडनों से भरे एक जीवन से उनकी आत्मा मुक्त हो गई। उनके स्वर्गारोहण के समाचार आटोमन के सुल्तान को भेजे गये, जिनसे इस आशय का निवेदन किया गया कि बहजी भवन के परिसर में उनकी समाधि बनाने की अनुमति दी जाये, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के आखि़री तेरह वर्ष बिताये थे। उसी दिन सूर्यास्त के थोड़ी देर बाद उन्हें समाधिस्थ कर दिया गया।
बहाउल्लाह की समाधि धरती पर दुनिया के बहाइयों के लिए आराधना का केन्द्र बन गई, एक ऐसा स्थान जिस ओर प्रतिदिन अपनी प्रार्थना के दौरान बहाई अभिमुख होते हैं।
आज समाधि में रौशनी से भरा, सादगी और सौन्दर्य में डूबा एक केन्द्रीय कक्ष है। कक्ष के मध्य में एक छोटा-सा उद्यान है, जिसके चारों ओर छोटे-छोटे कमरे हैं। केन्द्रीय कक्ष के एक कोने में वह कोष्ठ है जहाँ बहाउल्लाह के पार्थिव अवशेष रखे गये हैं।
बहाउल्लाह की समाधि का प्रवेश-द्वार
बहाई धर्म के संरक्षक के रूप अपने कार्यकाल के दौरान शोगी एफेंदी -बहाउल्लाह के परनाती - ने इस परम पावन स्थल के चारों ओर एक समुचित परिवेश के लिये उद्यानों की कल्पना की और उनका निर्माण करवाया। इसके बीच में समाधि तथा भवन, की शोगी एफेंदी की कल्पना एक विस्तृत वृत्ताकार क्षेत्र में मूर्तरूप ले चुकी है, जिसका प्रत्येक चैथाई हिस्सा अलग-अलग रंग-रूप का बगीचा है। इस उद्यान में प्रवेश के लिये उन्होंने पाँच प्रवेश-द्वार और नौ रास्ते बनवाये और उन रास्तों पर गैलिली सागर-तट से सफेद कंकड़ीले पत्थर तथा छत के खपड़ों को चूर कर बिछवाया। शोगी एफेंदी की मृत्यु के बाद भी बहाउल्लाह की समाधि के परिसर के सौन्दर्यीकरण की यह विशाल योजना जारी रही।
इस स्थल के मध्य में पैदल चलना एक शांत और पवित्र स्थान में प्रवेश करना है, बिना दीवारों वाला एक पावन स्थान जो बगैर किसी अहाते के संरक्षित है। यहाँ ऐतिहासिक भवनों के इर्द-गिर्द औपचारिक सटीक बागबानी चलती रहती है और प्राकृतिक अनुकूल वातावरण बना रहता है, जिसके निर्माण में सदियों पुराने गूलर के पेड़ और जैतून के बाग ने बड़ा सहयोग प्रदान किया है।
बहजी का एक दृश्य जिसमें सफेद भवन और बहाउल्लाह की समाधि देखी जा सकती है।