हायफा, इसरायल स्थित, कार्मल पर्वत पर बाब की समाधि बहाईयों के लिये दुनिया के पवित्रतम् स्थानों में से एक है।

बाब- बहाई धर्म के अग्रदूत

19वीं शताब्दी के मध्य में, जो दुनिया के इतिहास में सर्वाधिक अशांति का काल था, एक युवा व्यापारी ने घोषणा की कि ‘वह’ एक संदेश के संवाहक हैं जो मानवजाति के जीवन को रूपांतरित कर देने के लिये नियत है। एक ऐसे समय में, जब ‘उनका’ देश, ईरान, व्यापक नैतिक अधोपतन से गुजर रहा था, ‘उनके’ संदेश ने सभी वर्गों में उत्तेजना और आशा की लहर का संचार कर दिया, जिसने शीघ्रता से हज़ारों की संख्या में अनुयायियों को आकर्षित किया । ‘उन्होंने’ अपना नाम ‘बाब’ धारण किया, जिसका अर्थ अरबी भाषा में ‘द्वार’ होता है।

आध्यात्मिक और नैतिक सुधार का उनका आह्वान और स्त्रियों के स्थान को उन्नत करने, गरीबों की हालत सुधारने तथा आध्यात्मिक नवजीवन के लिए बाब का नुसख़ा क्रांतिकारी सिद्ध हुआ। साथ ही, उन्होंने ‘अपना’ स्वयं का एक विशिष्ट स्वतंत्र धर्म संस्थापित किया, जिसने उनके अनुयायियों को अपना जीवन रूपांतरित करने और शूरवीरता के महान कार्यों को करने के लिये प्रेरित किया।

बाब ने घोषणा की कि मानवजाति एक नये युग की दहलीज़ पर खड़ी है। ‘उनका’ मिशन, जो केवल छः सालों के लिये था, ईश्वर के उस अवतार के आगमन के लिये मार्ग तैयार करना था, जो दुनिया के सभी धर्मों में दिये गये वचन के अनुसार शांति और न्याय के युग को उद्घाटित करेंगे: बहाउल्लाह


“’उनका’ जीवन साहस के सर्वाधिक शानदार उदाहरणों में से एक है, जिसे देख पाना मानवजाति के लिये एक सौभाग्य की बात है...।”

— 19वी़ शताब्दी के फ्रांसिसी लेखक ए. एल. एम. निकोलस द्वारा बाब को श्रद्धांजलि।


इस विषय की छान-बीन

लेखों का यह संग्रह विश्व न्याय मंदिर के उद्गम, दायित्वों और काम की खोज करता है और सन् 1963 में पहली बार हुये इसके चुनाव से अब तक बहाई विश्व समुदाय के विकास और प्रगति की छान-बीन करता है। इसमें स्वयं विश्व न्याय मंदिर के कुछ महत्वपूर्ण संदेशों का संकलन भी शामिल है।

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