बाब के लेखों की संख्या और गुणवत्ता किसी भी पैमाने पर असाधारण है। अपने मिशन के पहले चार वर्षों में ही उन्होंने लाखों पद लिखे। बाब ने अनेक पत्र भी लिखे, जिनमें ईरान के बादशाह, मुहम्मद शाह के नाम लिखा पत्र भी शामिल था, उन्होंने देश के सभी प्रमुख धर्माधिकारियों को भी पत्र लिखे। अपने मिशन के प्रारम्भिक भाग में बाब ने अधिकांशतः अपनी हस्तलिपि में लिखे। बाद में उन्होंने एक सचिव को लिखवाना शुरू किया।
नीचे बाब के लेखों के कुछ अंशों का एक संक्षिप्त संकलन दिया गया है।
क्या ईश्वर के अतिरिक्त कठिनाइयों को दूर करने वाला अन्य कोई है ? कहो: ईश्वर का गुणगान हो, वही ईश्वर है, सभी उसके सेवक हैं और सभी उसके आदेश से प्रतिबंधित हैं!
(बाब के लेखों से संकलन )
ईश्वर के अतिरिक्त तुम अपने आप को सभी आसक्तियों से मुक्त कर लो, ‘उसे’ छोड़कर अन्य सब से अपने को अलग कर ईश्वर में अपने आपको समृद्ध बना लो और प्रार्थना करो:
कहो: परमेश्वर सर्वोपरि परिपूरक है, समस्त आसमानों और धरती पर या उनके मध्य ऐसा कुछ भी नहीं, जिसे नहीं कर सकता है वह पूरा। वस्तुतः वह स्वयं में ज्ञाता, अवलम्बनदाता, और सर्वशक्तिशाली है।
(बाब के लेखों से संकलन )
हे स्वामी! मैं ‘तेरी’ शरण में आना चाहता हूँ और ‘तेरे’ सभी चिन्हों की ओर अपना हृदय केन्द्रित करना चाहता हूँ। हे नाथ, चाहे मैं यात्रा पर रहूँ या घर पर, अपने व्यवसाय अथवा अपने काम पर रहूँ, मैं अपना पूरा भरोसा ‘तुझमें’ ही रखता हूँ।
हे अपरिमेय करूणा के ‘स्वामी’ ! मुझे भरपूर सहायता प्रदान कर, ताकि मैं सबसे स्वतंत्र हो जाऊँ। हे ‘तू’, जो असीम कृपा का स्वामी है। हे ‘नाथ’ ! अपनी प्रसन्नता के अनुसार मुझको मेरा अंश प्रदान कर और ऐसा वर दे कि जो कुछ भी ‘तूने’ मेरे लिये निर्धारित किया है मैं उससे ही संतुष्ट रहूँ।
आदेश देने का पूरा अधिकार तेरा ही है।
(बाब के लेखों से संकलन )
सर्वाधिक स्वीकार्य प्रार्थना वह है जो चरम आध्यात्मिकता और प्रदीप्ति से अर्पित की जाती है; इसका लम्बे समय का होना न तो ईश्वर को प्रिय रहा है और न रहेगा। जितने ही अधिक अनासक्त और विशुद्ध भाव से प्रार्थना की जाती है उतना ही अधिक वह ईश्वर की दृष्टि में स्वीकार्य होती है।
(फारसी ’बयान‘, बाब के लेखों से संकलन )
यह उचित है कि प्रत्येक प्रार्थना के बाद सेवक को अपने माता-पिता के लिये ईश्वर से याचना करनी चाहिये कि ’वह‘ उन्हें दया और क्षमा प्रदान करें।
(फारसी ’बयान‘, बाब के लेखों से संकलन )
मैं वह आदि बिन्दु हूँ जिससे सभी सृजित वस्तुओं को अस्तित्व प्रदान किया गया है। मैं ईश्वर का मुखमंडल हूँ जिसकी भव्यता को कभी धुंधलाया नहीं जा सकता, ईश्वर का वह प्रकाश हूँ जिसकी दीप्ति कभी मन्द नहीं पड़ सकती।
(मुहम्मद शाह को पत्र, बाब के लेखों से संकलन )
जिस तत्व से ईश्वर ने ‘मुझे’ रचा है, यह वह मिट्टी नहीं है जिससे दूसरों की रचना की गई है। उसने ‘मुझे’ वह प्रदान किया है जिसे संसार के ज्ञानवान भी नहीं समझ सकते, न ही निष्ठावान खोज सकते हैं।
(मुहम्मद शाह को पत्र, बाब के लेखों से संकलन )
एक व्यक्ति का मार्गदर्शन करना धरती की सभी वस्तुओं के स्वामित्व से बेहतर है, क्योंकि जब तक वह व्यक्ति दिव्य एकता के वृक्ष की छांव तले है तब तक वह और जिसने उसका मार्गदर्शन किया है - दोनों ही ईश्वर की सुकोमल दया के पात्र होंगे, जबकि धरती की वस्तुओं का स्वामित्व मृत्यु के समय समाप्त हो जायेगा। मार्गदर्शन का पथ प्रेम तथा सहानुभूति का पथ है, न कि बल अथवा ज़बर्दस्ती का। अतीत में ईश्वर का यही तरीका रहा है और भविष्य में भी निरन्तर रहेगा।
(फारसी ’बयान‘: बाब के लेखों से संकलन )
ब्रह्माण्ड के उस ‘स्वामी’ ने सभी मनुष्यों के साथ अपनी संविदा स्थापित किये बगैर न तो कभी किसी ईश्वरावतार को भेजा है, न ही उसने कोई ‘ग्रन्थ’ भेजा, और गुहार लगाई है कि अगले ‘प्रकटीकरण’ और अगले ‘ग्रंथ’ को मनुष्य स्वीकार करे, क्योंकि ‘उसके’ अनुग्रह के उद्गार असीम और अपार है।
(फारसी ’बयान‘: बाब के लेखों से संकलन )